कर्म के बिना फल की अभिलाषा करना, व्यक्ति की सबसे बड़ी मूर्खता है। Best motivational story in hindi
Shray -
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कर्म के बिना फल की अभिलाषा करना, व्यक्ति की सबसे बड़ी मूर्खता है। यह वाक्य हमें बताता है कि किसी भी कार्य को करने के बिना उसके फल की आशा करना अर्थहीन होता है। जब हम कोई कार्य करते हैं तो हमें उस कार्य को करने का स्वाद मिलता है, लेकिन यदि हम सिर्फ फल की आशा करते हैं तो हमारा ध्यान केवल फल की ओर होता है और हमें उस कार्य को करने का स्वाद नहीं मिलता।
इस वाक्य का मतलब है कि हमें कर्म करने का स्वाद लेना चाहिए, और कर्म करने के बाद उसके फल के लिए अपेक्षा नहीं करनी चाहिए। फल तो कर्म का निष्पादन होने के बाद आपूर्ति के अनुसार होता है। हमें केवल अपने कर्मों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
अगर हम अपने कर्मों के फल की आशा करते हैं तो हमें अन्याय का सामना करना पड़ सकता है। इस तरह के सोचने से हम दूसरों को ठगते हुए उनसे फल छिन सकते हैं, या अच्छाई के कार्यों के बजाय व्यक्तिगत फायदे के लिए कुछ भी कर सकते हैं। इसलिए हमें अपने कर्मों को उच्चतम मानवीय मूल्यों के अनुसार निर्णय करना चाहिए, और फल की अपेक्षा करना हमारा कर्तव्य है।" यहाँ वाक्य बताता है कि हमें कर्म करने का कर्तव्य होता है और फल की अपेक्षा करना उससे अलग होना चाहिए। कर्तव्य के अनुसार कर्म करना हमें समाज में अपनी भूमिका का निर्वाह करने में मदद करता है और सही कार्यों करने से हम अपने आप को समृद्ध बनाते हैं।
कर्म के बिना फल की अभिलाषा करना, व्यक्ति की सबसे बड़ी मूर्खता है।
इस वाक्य का संदेश है कि हमें अपने कर्मों को ईमानदारी से करना चाहिए और उनसे जुड़े फल की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए। हमें इस बात को समझना चाहिए कि हमारे कर्म हमारी व्यक्तिगत विकास और समाज के विकास के लिए जरूरी होते हैं और उनसे जुड़े फल की अपेक्षा करना हमारे उत्तरदायित्व को कम कर सकता है।
इसलिए, हमें अपने कर्मों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और अपने कर्तव्यों का निर्वाह सम्पूर्ण ईमानदारी से करना चाहिए। यदि हम यह नहीं करते हैं, तो हम खुद को संघर्षों में देखेंगे और फल की आशा से जुड़े उत्पादों की जगह, विकास की सही दिशा में जुटते हुए अपने कर्मों से संतोष और आनंद की प्राप्ति के अलावा, अपने कर्मों से संत होने का मतलब यह भी होता है कि हम निष्काम कर्म करते हैं। निष्काम कर्म का मतलब होता है कि हम कर्म करते हैं, लेकिन किसी भी प्रकार की फल की अपेक्षा नहीं करते हैं। इसके बदले में, हम कर्म करते हैं क्योंकि वह श्रेष्ठ होने की संभावना होती है या हमारे नैतिक दायित्व का भाग होता है।
इस तरह से, निष्काम कर्म हमें उन्नति के मार्ग पर ले जाता है और हमारे आसपास के लोगों के लिए भी एक उत्तम उदाहरण स्थापित करता है। हम अपने कर्मों से संत होते हुए, अपनी संसार की भावनाओं को समझते हैं, और अपने समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वाह करते हैं।
Best motivational story in hindi
एक समय की बात है, एक गांव में रहने वाले एक आदमी अपने बेटे को सीखाता था कि अपने कर्मों में अडिग रहने की महत्वता होती है। वह अपने बेटे से बार-बार कहता था कि फल की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए, और उसे सदैव निष्काम कर्म करना चाहिए।
एक दिन, उसका बेटा अपने घर के बाहर खेलते हुए एक पेड़ के नीचे बैठा था। उसने देखा कि एक आदमी बहुत उदास होकर वहां से गुजर रहा था। बच्चा ने उसे पूछा कि आप उदास क्यों हो? तो आदमी ने उत्तर दिया कि उसके पुत्र ने अपनी परीक्षा में नाकामी हासिल की है और अब वह बहुत निराश हो रहा है।
बच्चा ने उस आदमी से कहा कि आप अपने बेटे को कर्म में अडिग रहने के बारे में सिखाएं, उसे फल की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए। इससे वह निराश नहीं होगा।
आदमी ने बच्चे की बात सुनी और उसे धन्यवाद दिया। उसने सोचा कि बच्चा सही कह रहा है, मैं अपने बेटे को यह सीखाऊंगा। उसने बच्चे के बाप से मिलकर उसे अपने बेटे को समझाने के लिए एक कहानी सुनाई।
वह कहता था कि एक बार एक व्यापारी ने एक घर के सामने एक पेड़ लगवाया था। उसने उस पेड़ को पौधा लगाने के लिए बहुत समय और पैसे खर्च किए थे। पर उसने अपने कर्मों में लगाव और मेहनत से उस पेड़ को बढ़ावा दिया था। उस पेड़ के फल तभी मीठे होने लगे जब वह पूरी तरह से पक गए थे।
इसी तरह, हमें अपने कर्मों में लगाव और मेहनत करनी चाहिए। हमें फल की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए, बल्कि हमें अपने कर्मों से संतुष्ट होना चाहिए।
उस दिन से उस आदमी ने अपने बेटे को यह समझाया कि फल की अपेक्षा करना गलत है और अपने कर्मों में लगाव और मेहनत करने से हमें संतुष्टि मिलती है। बच्चा ने इस सीख को समझ लिया और उसने अपनी परीक्षा में सफलता हासिल की।
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Summary - सारांश
"कर्म के बिना फल की अभिलाषा करना, व्यक्ति की सबसे बड़ी मूर्खता है।" यह कहावत हमें बताती है कि कर्म और उससे मिलने वाले फल के बीच का संबंध बहुत गहरा होता है। यदि हम अपने कर्मों में लगाव और मेहनत करें, तो फल अपने आप हमारे पास आ जाएगा। लेकिन अगर हम फल की अपेक्षा करते हैं और कर्म में लगाव नहीं दिखाते हैं, तो हम निराश हो जाते हैं। इसलिए, सही दिशा में जुटते हुए अपने कर्मों से संतुष्ट रहना हमारे लिए बेहद जरूरी है।